बड़े दुःख की बात है की क्षुद्र ही आपने आप को अछूत मानता है . जहॉ जाओ वहां अपने आप को साबित करता है . आरक्षण के नाम पर या फिर कुछ और . समाज से संस्कृत भाषा और उनमे लिखा साहित्य गया की लोग बेवकूफ पैदा होने लगे. मनुस्मुर्ति पढ़ेंगे तो पता चलेगा की परिचर्मात्मक कर्म को क्षुद्र कहा जाता है अर्थात जो सेवा कार्य हो वो . जैसे डॉक्टर , वकील , रिक्शा चलने वाला इत्यादि . हम समझते है सिर्फ सफाईवाला ...ये बिलकुल गलत है. डॉक्टर भी क्षुद्र है
मई एक बचपन की बात बताता हु. मैंने पहलीबार उनके साथ नास्ता का डिब्बा खोला तो उसने बताया तुम मेरा खाना नहीं खा सकते मई अछूत हु . दुःख की बात ये नहीं की वो अछूत है . दुःख की बात ये है की वो अपने आप को अछूत समाजता है . मैंने कहा उनसे तुम अस्व्छ हो सकते हो लेकिन अछूत नहीं . मैंने उनके साथ नास्ता किया .
नहेरु वर्ण व्यवस्था के खिलाफ था, कांग्रेस पहलेसे ही divide and rule फॉलो करती थी . गोरो की औलाद . बाद में आरक्षण के नाम पर और भी भेद बढ़ता गया .
भारत में कभी वर्ण भेद नहीं था . प्रभु राम भील जाती की सबरी के जूते बेर खाए . अमिताभ बच्चन के खानदान में आज भी होली के दिन उन क्षुद्र के गर जा के पहले उनके कदमो पे रंग उड़ाके फिर होली खेलते है .
लोगो से निवेदन है . मनुस्मुर्ति तटस्थ ता से पढ़े .अपनी बुद्धि का प्रदसन् न करे .